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कविता

माँगना आसान नहीं होता...

संदीप तिवारी


'माँगना' कितना भयानक शब्द है
कि माँगने से पहले का डर
माँगने से मना करता है,
लेकिन न माँगना भी
मुश्किलों का हल नहीं होता,
जो लोग माँगने के नुस्खों से परिचित हैं,
जरा उनसे पूछिए कि
माँगने से पहले
उनका हाथ कलेजे पर नहीं रहता...?
पूछिए कि
उनका मुँह किस गति से काँपता है...?
पूछिए कि
अपनी ही नजरों में कितना धँसते हैं...?
पूछिए कि
रोते हैं या फिर हँसते हैं...?
बस इतना समझिये कि
यहाँ एक आग है,
जो भभककर जलती रहती है
और देने वाले के इनकार के बाद भी
बुझती नहीं है
सुलगती रहती है...
और इस सुलगती आग से निकले धुएँ,
यह लिखा करते हैं कि
न माँगना बड़े लोगों की बात है
न माँगना चोरों की जात है
लेकिन ये माँगने वाले
अलग दुनिया के होते हैं,
मुँहफट, मुँहजोर...
जो लगभग हर दरवाजे पर दुरदुराए जाते हैं
फिर भी माँगते हैं,
मुँह खोल के माँगते हैं
निगाहें मोड़ के माँगते हैं
हथेली जोड़ के माँगते हैं
माँगना इतना आसान भी नहीं
है कि नहीं!


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